खिडकी के उसपार घनघोर घटा के सन्नाटे तले
बारिश की रिमझिम बौछारो के बीच;
दूर गली मे झिलमिलाती हुई रोशनी मे
मुझे देख न जाने कौन अट्खेलियाँ कर रहा है !
कुछ कुछ धूमिल सा जाना-पहचाना लग रहा है,
ना जाने क्यू वो मुझ पर हॅस रहा है !!
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कही वो मेरे बचपन का अतीत तो नही ???
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